जापान और अमेरिका के बीच रिश्तों में नाराजगी उभर रही है। जापान और अमेरिका के बिच बहस में एक ओर व्यापारिक विवाद और शुल्क की गड़बड़ियाँ रिश्तों को तनावपूर्ण बना रही हैं, तो दूसरी ओर तकनीकी सहयोग और निजी निवेश दोनों को मजबूती भी प्रदान कर रहे हैं। अगर व्यापार विवाद जल्द ही हल हो जाता है और अमेरिका जापान के साथ वादों को पूरी तरह निभा लेता है, तो यह साझेदारी एक नए स्वर्ण युग की शुरुआत कर सकती है। लेकिन अगर इन दोनों के बिच पारदर्शिता और भरोसे की कमी बनी रही, तो यह रिश्ता लंबे समय तक अस्थिरता से जूझता रहेगा। और आने वाले समय में दोनों देशों के बिच व्यापार ख़त्म हो जायेगा।

व्यापार समझौतों में रुकावटें–
दरअसल , जुलाई 2025 में अमेरिका और जापान के बीच एक बड़े व्यापार समझौते की घोषणा हुई थी। जिसमे जापान ने वादा किया था कि वह अमेरिका में लगभग 550 अरब डॉलर का निवेश करेगा और बदले में अमेरिका जापानी आयातों पर लगने वाले भारी भारी शुल्कों को घटाएगा। इस समझौते को दोनों देशों के बीच “नई आर्थिक साझेदारी” की ओर बढ़ता कदम माना जा रहा था। लेकिन हुआ इसका उलटा,….लेकिन कुछ ही हफ्तों में स्थिति उलझ सी गई। जापान ने आरोप लगाया कि अमेरिका ने वादे के अनुसार 25% शुल्क को घटाकर 15% करने की बजाय उसे बढ़ा दिया, जिससे शुल्क वास्तव में पहले से भी ज्यादा हो गया। इस गड़बड़ी के कारण जापान के प्रमुख व्यापार वार्ताकार र्योसेई अकाज़ावा ने अचानक अपनी वाशिंगटन यात्रा रद्द करी। ये कदम इस बात का संकेत था कि जापान इस गलती को हल्के में नहीं लेना चाहता।
जापान -अमेरिका की बहस में अमेरिका ने बाद में माना भी कि यह कोई तकनीकी गड़बड़ी थी और वादा किया कि अतिरिक्त शुल्क वापस किए जाएंगे और वास्तविक 15% शुल्क लागू किया जाएगा। हालांकि, जापान तब तक इंतजार कर रहा है जब तक कि संशोधित कार्यकारी आदेश औपचारिक रूप से लागू नहीं होता। इस विवाद की वजह से फिलहाल पूरा 550 अरब डॉलर का निवेश पैकेज अधर में लटक गया है, जिससे व्यापारिक रिश्तों पर अस्थिरता का साया मंडरा रहा है।
रक्षा और उच्च तकनीक में बढ़ रहा सहयोग–
जहाँ व्यापारिक रिश्ते उलझनों में फंसे हुए हैं, वहीं रक्षा और तकनीकी सहयोग में तेजी देखी जा रही है। जापान और अमेरिका की बहस में अमेरिका के पेंटागन की Defense Innovation Unit (DIU) अब जापान सहित कई सहयोगी देशों में अपने प्रतिनिधि भेज रही है। इस कदम का उद्देश्य है कि ड्रोन, साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों की साझेदारी को गहराई दी जा सके।
इस पहल का सीधा संबंध चीन की बढ़ती तकनीकी और सैन्य क्षमता से भी है। अमेरिका की चाहत है कि उसके करीबी सहयोगी देश, जैसे जापान, मिलकर तकनीक के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा करें और इंडो-पैसिफिक जैसे क्षेत्र में संतुलन बनाए रखें। जापान भी इस सहयोग को लेकर गंभीर है क्योंकि यह उसकी अपनी सुरक्षा नीति और वैश्विक भूमिका के अकॉर्डिंग है।
जापान का अमेरिका पर ऐशान ….
केवल सरकारें ही नहीं, बल्कि निजी क्षेत्र भी दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। जापान के अरबपति और सॉफ्टबैंक समूह के संस्थापक मसायोशी सोन ने अमेरिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और सेमीकंडक्टर उद्योगों में अरबों डॉलर का निवेश किया गया है।
सोन का अमेरिका में निवेश ना केवल आर्थिक रिश्तों को मजबूत कर रहा है बल्कि यह निवेश दोनों देशों के तकनीकी सहयोग को भी नई ऊँचाई पर ले जा रहा है। विशेष रूप से ओपनएआई और इंटेल जैसी अमेरिकी कंपनियों में उनका निवेश और एरिज़ोना में बनने वाला हाई-टेक कॉम्प्लेक्स, अमेरिका-जापान आर्थिक गठबंधन का प्रतीक बन चूका है। जुलाई में हुआ समझौता “स्वर्ण युग” की शुरुआत माना जा रहा था, लेकिन उसकी अस्थिरता ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह साझेदारी वास्तव में दीर्घकालिक भरोसे पर आधारित है या सिर्फ राजनीतिक और आर्थिक मजबूरी का परिणाम।